अगर पेड़ भी चलते

(अगर पेड़ भी चलते )

अगर पेड़ भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते ।
बांध तने में उसके रस्सी
चाहे जहां कहीं के जाते ।

कहा कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते
जहां कहीं वर्षा हो जाती ,
उसके नीचे हम छीप जाते ।

लगती जब भी भूख अचानक
तोड़ मधुर फल उसके खाते ,
आती कीचड़ , बाढ़ कहीं तो
झट उसके ऊपर चढ जाते ।

अगर पेड़ भी चलते तो
कितने मजे हमारे होते ।


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