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Life shayri

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कीचड़ में पैर फंस जाये तो नल के पास जाना चाहिए, मगर नल को देखकर कीचड़ में नही जाना चाहिए ! इसी प्रकार.. जिन्दगी में बुरा समय आ जाये तो पैसों का उपयोग करना चाहिए, मगर पैसों को देखकर बुरे रास्ते पर नही जाना चाहिए !!  
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(रिश्ते ) रिश्ते वो नहीं जिसमें रोज़ बात हो । रिश्ते वो भी नहीं जिसमें रोज़ साथ हो । रिश्ते तो वो है , जिसमें कितनी भी दूरियां हो लेकिन दिल में हमेशा , उनकी याद हो ।

समय

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(समय ) पुराना समय जा रहा , नया समय आ रहा है । हर कोई  अपनी तरह से गम और खुशियां मना रहा है । हमारे लिए तो ना दशा बदली है और ना बदले गए हालात । जहां कल खड़े थे आज भी वही से रस्ता जा रहा है । पलट कर देख रहे है जो पीछे  छूट गया है । क्या पता वही समय फिर सामने आ रहा है।  कहते है किस्मत के सहारे नहीं रहना चाहिए । पर हाथो की लकीरें भी तो भाग्य बना रहा है । हम भी खुश रहे तुम भी खुश रहो  । ये समय भस इतना सीखा रहा है । ईश्वर कहता है कि बुरा समय कभी ना कभी तो चला जाएगा । पर हर बुरे समय से भी तो वहीं मिलवा रहा है।  

कोशिश कर

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(कोशिश कर) कोशिश कर , जल निकलेगा । आज नहीं तो , कल निकलेगा । अर्जुन के तीर सा सध , मरुस्थल से भी जल निकलेगा ।। मेहनत कर पोधो को पानी दे , बंजर ज़मीन से भी फल निकलेगा । ताकत जुटा हिम्मत को आग दे , फोलाद का भी बल निकलेगा । जिंदा रख , दिल में उम्मीदों को , गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा । कोशिशें जारी रख  कुछ कर गुजरने की , जो है आज थमा -थमा सा , चल निकलेगा ।।

अगर पेड़ भी चलते

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(अगर पेड़ भी चलते ) अगर पेड़ भी चलते होते कितने मजे हमारे होते । बांध तने में उसके रस्सी चाहे जहां कहीं के जाते । कहा कहीं भी धूप सताती उसके नीचे झट सुस्ताते जहां कहीं वर्षा हो जाती , उसके नीचे हम छीप जाते । लगती जब भी भूख अचानक तोड़ मधुर फल उसके खाते , आती कीचड़ , बाढ़ कहीं तो झट उसके ऊपर चढ जाते । अगर पेड़ भी चलते तो कितने मजे हमारे होते ।

प्रकृति का संदेश

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(प्रकृति का संदेश ) चिड़ियों से है उड़ना सीखा , तितली से इठलाना । भंवरो की गुंजन से सीखा , राग मधुरतम गाना । तेज लिया सूरज से हमने , चांद से शीतल छाया । टीम -टीम करते तारो की , हम समझ गए सब माया । सागर ने सिखलाई हमको , गहरी सोच की धारा । गगनचुंबी पर्वत से सीखा , हो ऊंचा लक्ष्य हमारा । समय की टिक - टिक ने समझाया , सदा ही चलते रहना । मुश्किल कितनी आन पड़े , पर कभी ना धीरज खोना । प्रकृति के कण - कण में  है , सुन्दर सन्देश समाया ।

सीखो

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(सीखो) फूलो से नित हंसना सीखो , भोंरो से नित गाना । फल से लदी  डालियों से नित , सीखो शीश झुकाना । सिख हवा के झोंके से लो , कोमल-कोमल बहना । दूध तथा पानी से सीखो , मेल- जोल से रहना । सूरज की किरणों से सीखो , जगना और जगाना । लता और पेड़ों से सीखो , सबको गले लगाना । दीपक के जलने से सीखो , अन्धकार को हरना । पृथ्वी से सीखो सबको नित , सच्ची सेवा करना ।